पार्श्व गायिका शारदा का विविध भारती पर साक्षात्कार (एपिसोड – 6)

Wednesday, December 30, 2009

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


Interview with Playback Singer Sharda on Vividh Bharti (11.10.09).
(This is the hindi-devanagari transcript. However, it is really heartening to receive many readers' requests to post the english translation since they have difficulty reading in hindi. English translation would certainly be posted ASAP. Please keep looking for the same!)



Sharda had made her grand debut in hindi film industry with the movie-Suraj, the music for which was composed by arguably the best and most popular ever MDs in HFM: Shankar - Jaikishan. (शंकर-जयकिशन से सम्बन्धित विस्तृत, दिलचस्प जानकारी की लिंक्स के लिए क्लिक करें - शंकर-जयकिशन)



उजाले उनकी यादों के - शारदा
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एपिसोड-6 (18.10.09)
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श: शारदा
यूख़ा: यूनुस ख़ान
यूख़ा: शारदा जी, विविध भारती के 'स्टूडियोज़' में आपका एक बार फिर से स्वागत है, मैं सोच रहा हूं कि इतने सारे सवालों से किस सवाल से शुरू किया जाए यह 'एपिसोड'? आपने कहा कि बेगम अख़्तर भी आपकी 'फॅवरॆट' रही हैं.
श: जी जी जी, उनका कौन सा गाना है (सिंग्स) "मेरे हमसफ़र मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बनकर दग़ा न दे". याद नहीं आ रहा है. आप पहले बता देते तो तैयारी करके आती (यूख़ा लाफ्स). खैर!
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सॉंग: मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा (नॉन फिल्म - बेगम अख़्तर)
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यूख़ा: आप गाना गाते वक़्त किन बातों पर ज़ोर देती थीं, ध्यान देती थीं, 'रेकॉर्डिंग' वाले दिनों में?
श: आवाज़ सही रहना चाहिए, तबीयत 'फ्रेश' रहना चाहिए, बाकी तो 'म्यूज़िक डायरॆक्टर' लोग 'कंडक्ट' करते थे ना, कोई परेशानी नहीं होती थी, 'दे विल मेक सिंग यू नो', वो सामने खड़े रहते थे और आपको गाना 'ऑटोमॅटिक' आ जाता था. यूख़ा: एक एक गाने की 'रेकॉर्डिंग' में कितना समय लगता होगा तब?
श: कभी-कभी 14 'टेक्स' भी होते थे. सुबह गये 9 बजे, फिर 'रिहर्सल्स' होते थे, 'म्यूज़ीशियनस' के साथ 'रिहर्सल्स' , फिर 'वॉइस बॅलेन्स' हुआ, फिर 'टेक्स स्टार्ट' हुआ, कभी एक 'टेक', कभी तीन 'टेक्स', इस तरह से शाम तक हुआ करते थे.
यूख़ा: मतलब एक गाना एक दिन में हुआ करता था. आज जब आप सुनती हैं कि 14 - 14 गाने एक व्यक्ति एक दिन में गा रहा है...
श: ठीक है ना, 'होलसेल मार्केट' जैसा हो गया है (यूख़ा लाफ्स), 'स्टॉक मार्केट' के जैसे बात करते हैं, यह भी एक 'मार्केट' हो गया है. यूख़ा: जी. शायद इसीलिए गुणवत्ता की कमी हो गयी है
श: यस
यूख़ा: वो बात नहीं रही.
श: राइट-राइट
यूख़ा: शारदा जी, सबसे ज़्यादा वक़्त आपके किस गाने की 'रेकॉर्डिंग' में लगा होगा?
श: "वो परी कहाँ से लाऊं"
यूख़ा: ह्म्म्म्म ह्म्म्म्म, क्या वजह थी कि उसमें इतना वक़्त लगा?
श: क्योंकि बहुत सारे अँतरे थे और बहुत सारी लडकियां थीं, और तीन 'सिंगर्स' थे, और "बड़कम्मा" में भी 'टाइम' लगा क्योंकि मोहम्मद साहब (रफ़ी) बहुत सारे 'डाइलॉग्स' बोलने लगे क्योंकि इत्तेफ़ाक़ यह हुई कि उस वक़्त बॉम्बे लॅब्स में 'रेकॉर्ड' हुआ और दो तीन 'माइक्रोफोन' रखे थे कि उसमें से एक 'माइक्रोफोन' खराब हो गया. रफ़ी साहब को एक 'माइक्रोफोन' दे दिया और मुझे कह दिया कि महमूद साहब के साथ आप एक 'माइक्रोफोन शेअर' करो. तो मैं गाने लगी तो महमूद साहब भी "मुझे होश उड़ा दे यंकन्ना", "उड़ा डालूँगा" वो आ रहे हैं, बीच में घुस रहे हैं (यूख़ा लाफ्स). मैने बोला कि मुझे 'नेक्स्ट लाइन' गाने का है, "आँखों से पिला दे यंकन्ना", फिर "पिला डालूँगा" (यूख़ा लाफ्स), ऐसा कर-कर के मुझे वापस आना पड़ा. रेकॉर्डिस्ट शर्मा जी कहने लगे कि महमूद जी ने आपको इतना तंग किया और आप ने भी उसका बराबर जवाब दिया.
यूख़ा: और 'लाइव ऑर्केस्ट्रा'
श: 'लाइव ऑर्केस्ट्रा' और सारे खड़े हैं सामने, और वो चिल्ला रहे हैं, और बीच में इतना यह वो बोल रहे हैं.यूख़ा: तो आप 'डिस्टर्ब्ड' नहीं हुईं?
श: हां, बीच में उनको सुर में गाने का है, और बीच में वो मेरे 'माइक्रोफोन' में घुस रहे हैं. उनका अलग 'माइक्रोफोन' है. 'आई हॅव टु मूव ऎंड कम बॅक यू नो, विदाउट गिविंग माइ वॉइस अ शेक'.
यूख़ा: और कई बार ऐसा होता है ना कि जब कोई शरारती कलाकार साथ में हो तो अपनी 'लाइन्स' भूलने का डर होता है.
श: हां, लेकिन 'कॉन्सेंट्रेट' करके रखना चाहिए ना, तभी तो 'सिंगर्स' की ये है ना. यह गाना 'टॉप सेलिंग्स' में आया, 1968 में 'टॉप 10' में.
यूख़ा: जी, और बहुत मह्त्वपूर्ण गाना है और इस गाने के काफ़ी 'टेक्स' हुए होंगे जब महमूद साहब इतने तंग कर रहे थे तो?
श: हां एक-एक 'टेक' में वो कुछ कहते जा रहे हैं. शंकर साहब ने भी कह दिया था कि जो मर्ज़ी कहो (बोथ लाफ़).
यूख़ा: पूरी आज़ादी हो गयी थी
श: आज़ादी हो गयी थी उनको
यूख़ा: तो हर बार वो अपने 'डाइलॉग्स चेंज' कर देते थे?
श: हां, कभी कुछ, कभी कुछ बोलते रहे हैं.श: (सिंग्स) "बड़कम्मा-बड़कम्मा इकड पोतॉरा". इसमें भी जो 'सोल पॉइंट' है ना, जो झटके देना है, बड़कम्मा-बड़कम्मा-बड़कम्मा-बड़कम्मा, एक एक 'बीट' आनी चाहिए, इकड पोतॉरा, इकड-इकड रा....
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सॉंग: बड़कम्मा-बड़कम्मा इकड पोतॉरा (शतरंज)
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यूख़ा: क्या बात है! क्या बात है! जब हम यह गाना सुनते हैं तो सुनते हुए ऐसा नहीं लगता है कि इसको बनाते हुए इतनी मेहनत लगी होगी.
श: या या, कि 'रेकॉर्डिंग' के 'टाइम' क्या-क्या होता है.
यूख़ा: लोगों को यह बताया जाए कि एक गाना बनते हुए कितनी-कितनी कहानियाँ. ..
श: कितनी-कितनी कहानियाँ, कितनी-कितनी मेहनत और 'म्युज़ीशियन्स' लोग भी, उनका 'मेन्शन' किए बिना छोडना नहीं चाहिए, वो इतने 'डिवोटेड' थे, वो 'टाइम' नहीं देखते थे, घड़ी नहीं देखते थे, उनको 'ओवरटाइम' मिलेगा, क्या मिलेगा, 'दे नेवर बॉदर्ड अबाउट इट', उनको गाना बराबर आना चाहिए, गाना बजाते वक़्त सबको सुना देते थे. 'म्यूज़िक डाइरेक्टर्स' ओक कर देने के बाद भी कुछ 'म्युज़ीशियन्स' थे जो 'वन मोर टेक, वन मोर टेक' कहते थे. इस तरह से वो 'सिन्सियर' थे.
यूख़ा: जी. और 150-200 लोग, साज़िन्दे बजा रहे हैं और कुछ लोग गा रहे हैं, और उसमें बार-बार 'टेक' हो रही हो तो उसका मतलब यह है कि उसमें 150-200 की मेहनत शामिल हो रही है.
श: और उनके लिए 'कन्डक्टर्स' होते थे. जैसे 150-200 लोग हैं तो उनके लिए 4-5 'कन्डक्टर्स' होने चाहिए, 'दे विल गो अदरवाइज़', 'वेवी' हो जाएगा ना! 'एवरिथिंग शुड कम इन वन हार्मनी'. तो कौन सा कहाँ पर क्या बजाना है, कभी 'ग्रूप इन्स्ट्रुमेंट्स' है, कभी 'सोलो' है, वो सब 'कंट्रोल' करना चाहिए.यूख़ा: इसी तरह के आपके और कठिन गाने कौन से रहे हैं? किशोर दा के साथ या किसी और के साथ जिनमें बहुत ज़्यादा 'स्पॉंटॆनिटी' रही हो?
श: 'स्पॉंटॆनिटी' ही रही, ऐसा कोई कठिन तो नहीं लगा क्योंकि 'रिहर्सल' होती थी, तैयारी होती थी, कभी कभी 'म्युज़ीशियन्स' के साथ भी 'रिहर्सल्स' भी कर लेते थे, उसके बाद हम 'रेकॉर्डिंग' करते थे, काफ़ी 'स्मूद्ली रेकॉर्डिंग' होती थी. शंकर जयकिशन का ‘सच जीनियस म्यूज़िक डाइरेक्टर्स’, वो तो कैसे भी लोगों को गवा लेते थे, हमने तो मेहनत भी थोडा किया, इसलिए 'प्रॉब्लम' होने का सवाल ही नहीं है.
यूख़ा: शंकर जयकिशन का जो 'म्यूज़िक' है, जो 'स्टाइल ऑफ म्यूज़िक' है, वो बहुत ही अलग रहा है, पूरा का पूरा एक युग...
श: मैं तो कहती हूं कि शंकर जयकिशन का 'म्यूज़िक' अगर निकाल दो तो हम लोगों का 'म्यूज़िक' एकदम 'बॅक्वर्ड' हो जाएगा, क्योंकि सब 'वेराइटी ऎंड वेस्टर्न वेराइटी', यह सब नया 'स्टाइल' लाने वाले शंकर जयकिशन ही थे. तो 'यूज़ुअली' सरगम के हिसाब से सब गाने नीचे से ही हुआ करते थे, और कोई भी गाना ऊंचे स्वर में उससे पहले किसी भी 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' ने बनाया नहीं था. जैसे (सिंग्स) "दिल तेरा दीवाना है सनम", ऐसे ऊपर के 'नोट' से किसी ने भी 'स्टार्ट' नहीं किया. और अलग-अलग ढंग से, अलग-अलग 'स्टाइल' से, (सिंग्स) "अई यइ या करूँ मैं क्या सुकु-सुकु", इस तरह से चीज़ें किसी ने पहले नहीं किया. और शंकर जयकिशन ने पूरे 'ऑर्केस्ट्रा' को 'पार्ट बाइ पार्ट' करना, 'पार्ट, काउंटरपार्ट' , इधर ताम-ताम-ताम बज रहा है, उधर ढोलक बज रहा है, कितने ही उनके पीछे 'सपोर्ट' लाना. नहीं तो सिर्फ़ तबला बज रहा है, गाना हुआ फिर थोड़ा साज़ हुआ, फिर तबला हुआ...
यूख़ा: काफ़ी सरल 'स्ट्रक्चर' हुआ करता था.
श: शंकर जयकिशन ब्रॉट न्यू एरा इन म्यूज़िक इंडस्ट्री.
यूख़ा: शंकर जयकिशन के कुछ गानों पर रोशनी डालिए कि जो बहुत मह्त्वपूर्ण रहे अपनी बनावट में.
श: वो "दिल की नज़र से" जो है ना, (सिंग्स) "दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से", उसके साथ वो 'म्यूज़िक' टन-टन-टन, टन- टन-टन, वो चलता रहेगा, वो 'नोट' कीजिए आप. इस तरह से 'म्यूज़िक अरेंज्मेंट' कहीं और नहीं मिलेगा.
यूख़ा: इस गाने का 'सिग्नेचर म्यूज़िक' भी कितना कमाल है, गाना शुरू होने से पहले.
श: इस तरह से हर गाने में कुछ ना कुछ बात है. लेकिन उन दिनों उतनी 'फेसिलिटीज़' ना होने की वजह से कुछ 'म्यूज़िक पार्ट्स' दब गये हैं, 'वॉइस' को 'इंपॉर्टेन्स' दिया, मतलब 'वर्ड्स' समझ में आना चाहिए, यह सोच कर 'म्यूज़िक पार्ट्स' कुछ-कुछ छुप गये हैं.
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सॉंग: दिल की नज़र से नज़रों की दिल से (अनाड़ी)
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एंड ऑफ पार्ट- 6

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